1. दीपावली
1. दीपावली पर लेक कैसे लिखें |
मनुष्य के जीवन में सामान्य और विशेष दो प्रकार के कार्य होते हैं। सामान्य कार्य और सामान्य दिन बराबर होते हैं, किंतु विशेष कार्य और विशेष दिन अपने नियत समय पर आते हैं और उनका विशेष महत्त्व होता है। त्योहारों का महत्त्व इसलिए है कि उनमें अनेक विशेषताएँ होती हैं तथा वे विशेष समय पर आते हैं। भारतवर्ष एक ऐसा देश है जहाँ प्राचीनकाल से वर्णाश्रम व्यवस्था चली आ रही है। मूलतः भारतीय समाज चार वर्णों में विभाजित है। प्रत्येक वर्ण का अपना-अपना त्योहार होता है। उन त्योहारों का भारतीय समाज में बड़ा महत्त्व है। यह त्योहार मनाने की प्रथा मानव- समाज में अज्ञातकाल से चली आ रही है। भारत में चार त्योहार मुख्य रूप से मनाये जाते रहे हैं-रक्षाबंधन, विजयादशमी, दीपावली और होली।दीपावली का त्योहार विशेषकर वैश्य वर्ग का माना जाता है इसका समय कार्त्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या माना जाता है। उस समय वर्षा बीत गयी रहती है, खेती का कार्य प्रायः कम हो जाता है। व्यवसायी वर्षाकाल में अपना संग्रहीत माल बेच चुके होते हैं। उनकी लक्ष्मी अधिकांश उनके पास आ चुकी होती हैं। वे उसकी पूजा करते हैं। पूजा के पहले पूरे मकान की सफाई की जाती है। अमावस्या के दिन दीपमालिका का उत्सव मनाया जाता है। देहातों में दरिद्र खदेड़ने की परिपाटी भी चलती है।इसलिए दीपावली के एक दिन पहले नरक-चौदस होती है और इस दिन घरों का कूड़ा-करकट सब फेंककर उनकी लिपाई-पुताई करते हैं। दीपावली के दिन सबके घर लिपे-पुते, साफ-सुथरे दिखाई पड़ने लगते हैं। यह भी कहा जाता है कि इसी तिथि को महराजा रामचंद्र जी ने लंका विजय करके अयोध्या में पदार्पण किये थे। उनके आगमन के उपलक्ष्य में उस समय अयोध्या नगर में दीपमालिका मनायी गयी। उसी घटना की स्मृति में आज भी दीपावली मनायी जाती है।यह वैश्यों का त्योहार विशेष रूप से इसलिए भी माना जाता है। कि वैश्य वर्ग का कार्य था कृषि और व्यवसाय । कृषि कार्य इस समय समाप्त-सा माना जाता है, क्योंकि खरीफ, भदई का काम पूरा हो चुका होता है। रबी की बुआई समाप्त हो चुकी होती है। व्यवसायियों को नये माल के लिए बाहर जाना पड़ता है तथा कृषकों से उनके माल की ढुलाई में सहायता मिलती है, क्योंकि वे खाली रहते हैं। कतिपय किसान कुछ थोड़ा-बहुत व्यवसाय भी करते हैं। इस त्योहार को मनाकर सभी अपने कार्य में लग जाते हैं। प्राचीन काल में भारत में प्रकृति-पूजा की परिपाटी अधिक थी। लक्ष्मीजी संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती थी। अतः उनकी पूजा उत्साह से की जाती थी। अब भी व्यवसायी वर्ग लक्ष्मी पूजन उत्साह से करता है। वर्षा की नयी तथा विभिन्न प्रकार की गंदगियाँ साफ कर दी जाती हैं और समाज नयी स्फूर्ति से काम प्रारंभ करता है। दीपावली हिंदू संस्कृति का सोल्लासपूर्ण त्योहार है।
2. दशहरा |
भारत में शक्ति और ऐश्वर्य की पूजा अति प्राचीनकाल से चली आ रही है। शास्त्रबल के साथ ही भारतवासियों ने शस्त्रबल को भी अधिक महत्त्व दिया है। यही कारण है कि देवी दुर्गा की आराधना भारतवासी प्राचीनकाल से ही करते चले आ रहे हैं।
दुर्गापूजा को विजयादशमी के नाम से भी पुकारा जाता है। इसके भी कई कारण हैं। इस दशमी की तिथि को विजया अर्थात् महाशक्ति की विधिपूर्वक आराधना एवं अनुष्ठान किया जाता है, इस कारण उसे विजयादशमी कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस तिथि को भगवान श्रीराम ने देवी दुर्गा की आराधना करके आततायी रावण पर विजय प्राप्त की थी और इसी कारण यह तिथि विजयादशमी के नाम से विख्यात हुई। एक अन्य मान्यता के अनुसार, यदि दशमी को श्रद्धापूर्वक देवी की आराधना की जाये तो जीवन में जय अवश्यंभावी होती है। यह भी मान्यता है कि महाविद्याओं एवं इन्द्रियों की संख्या 10 है। माता की आराधना इन दसों महाविद्याओं एवं इन्द्रियों पर अधिकार करने के लिए की जाती है। दुर्गापूजा को ‘दशहरा’ के नाम से भी पुकारा जाता है, क्योंकि इसी दिन दसमुख (रावण) का संहार किया गया था और उसके द्वारा उत्पन्न किये गये कष्टों का हरण किया गया था।माता दुर्गा के पूजने का विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि माँ दुर्गा समस्त राष्ट्र-शक्ति की प्रतीक हैं। अपने साधकों के हेतु वह सबकुछ करने को तैयार रहती है। वह सद्वृत्तियों में लगे हुए लोगों को कल्याण करनेवाली हैं। वे मनुष्यों के द्वारा ही नहीं बल्कि देवताओं के द्वारा भी वंदनीय हैं।दुर्गापूजा महोत्सव भारत में अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। औपचारिक रूप से यह उत्सव आश्विन मास की दूसरी प्रतिपदा से दशमी तक मनाया जाता है। भारत के विभिन्न भागों में दूर्गापूजा का आयोजन विभिन्न ढंग से होता हैं। न केवल भारत अपितु विदेशों में भी जहाँ भारतीय मूल के निवासी हैं, वहाँ दुर्गापूजा का आयोजन सोल्लास मनाया जाता है।माँ दुर्गा शक्ति की प्रतीक हैं। वह कष्टों को हरनेवाली और पापों का नाश करनेवाली हैं। महामोह, अविद्या और अज्ञान के बादलों को छिन्न-भिन्न करके वे विद्या और ज्ञान का प्रकाश फैलानेवाली हैं।
3. भारत के गाँव |
भारत गाँवों का देश है। यहाँ लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती है। भारत की सच्ची झाँकी गाँवों में देखी जा सकतीहै। इसकी उन्नति नगरों पर नहीं, अपितु गाँवों पर निर्भर करती है।
अतः ग्रामोन्नति का कार्य देशोन्नती कार्य है। पंत ने ‘भारत माता ग्राम-वासिनी’ नामक कविता में ठीक ही कहा है कि भारतवर्ष का वास्तविक स्वरूप गाँवों में है।ब्रिटिश शासनकाल में ग्रामीण जीवन की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया; इसकी पूर्णरूपेण उपेक्षा की गई। किंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के हमारी सरकार ने गाँवों की प्रगति के लिए भारी प्रयत्न किया। यहाँ की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए कृषि की प्रगति की गई, जिसके फलस्वरूप देश के कृषि उत्पादन में काफी वृद्धि हुई। सिंचाई के नए-नए साधन जुटाए गए। पहले गाँवों में छोटे-छोटे कच्चे मकान होते थे जो अधिक वर्षा होने के कारण गिर जाते थे। आज अधिकांश घर पक्के हैं। वैसे पूर्वी भारत में अब भी कच्चे मकान हैं।Uska ने शिक्षा के क्षेत्र में विशेष ध्यान दिया है। अब प्रायः सभी गाँवों में प्राथमिक पाठशालाएँ हैं। उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की संख्या भी गाँव में बढ़ाई जा रही है। प्रौढ़-शिक्षा की ओर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। पहले शिक्षा की ओर कम ध्यान दिया जाता था । आजकल कृषि की शिक्षा पर बहुत बल दिया जा रहा है।स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व गाँवों की आर्थिक दशा अत्यन्त शोचनीय थी। ग्रामीणों के पास खाने की रोटी तथा तन ढकने को कपड़ा तक नहीं था। वे ऋण से दबे हुए थे। कृषि की सारी उपज सेठ-साहुकार ले जाते थे। कृषि की दशा गिरी हुई थी। भारत का किसान प्रकृति के भरोसे पर रहता था। वह हल और बैल से खेती करता था। आज हमारी सरकार ने गाँवों की आर्थिक दशा को सुधारा है। वहाँ बैंकों की। स्थापना की है, जो थोड़े ब्याज पर किसानों को देते हैं। कृषि कृषि यंत्र खरीदने के लिए आर्थिक सहायता भी प्रदान जाती है। उनकी उपज का अधिक मूल्य दिलाने के लिए सरकार ने एक निगम की स्थापना कर रखी है, जो किसान के अनाज को निश्चित मूल्य पर खरीदता है। ग्रामीण लोगों को विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण दिया जाता है। हथकरघा की ओर विशेष ध्यान दिया गया है। इन सब प्रयत्नों से गाँवों की आर्थिक दशा सुधरी है। अब ग्रामवासियों ने भी सुख की साँस है। गाँवों में दिन-प्रतिदिन सामाजिक चेतना का विकास हो रहा है।पहले गाँवों में यातायात के साधनों की कमी थी। ग्रामवासियों को पक्की सड़क पर पहुँचने के लिए 15-15 कि० मी० तक पैदल चलना पड़ता था। अब देश में सड़कों का जाल-सा बिछ गया है। कहीं-कहीं अभी तक हमारे गाँव पिछड़े हुए हैं। सफाई तथा स्वास्थ्य शिक्षा की कमी है। वहाँ शिक्षा के क्षेत्र में काफी सुधार की आवश्यकता है । गाँव का किसान अब भी अंधविश्वासी है। सरकार ग्रामीण उद्योग-धंधों की ओर बहुत कम ध्यान दे रही है, पर अब भी इसमें विशेष रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि ग्रामीण जीवन में सुधार होगा तो देश खुशहाल होगा। हमारे देश की सच्ची प्रगति गाँवों के विकास पर ही निर्भर है।
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